।।दोहा।।
करूं वंदना गुरू चरण रज, ह्रदय राखी श्री राम ।
मातृ पितृ चरण नमन करूँ, प्रभु कीर्ति करूँ बखान ।।1।।
तव कीर्ति आदि अनंत है , विष्णुअवतार भिषक महान।
हृदय में आकर विराजिए,जय धन्वंतरि भगवान ।।2।।
।।चौपाई।।
जय धनवंतरि जय रोगारी ।
सुनलो प्रभु तुम अरज हमारी।।1।।
तुम्हारी महिमा सब जन गावें ।
सकल साधुजन हिय हरषावे।।2।।
शाश्वत है आयुर्वेद विज्ञाना ।
तुम्हरी कृपा से सब जग जाना ।।3।।
कथा अनोखी सुनी प्रकाशा ।
वेदों में ज्यूँ लिखी ऋषि व्यासा ।।4।।
कुपित भयऊ तब ऋषि दुर्वासा ।
दीन्हा सब देवन को श्रापा ।।5।।
श्री हीन भये सब तबहि ।
दर दर भटके हुए दरिद्र हि ।।6।।
सकल मिलत गए ब्रह्मा लोका ।
ब्रह्म विलोकत भयेहुँ अशोका ।।7।।
परम पिता ने युक्ति विचारी ।
सकल समीप गए त्रिपुरारी ।।8।।
उमापति संग सकल पधारे ।
रमा पति के चरण पखारे ।।9।।
आपकी माया आप ही जाने ।
सकल बद्धकर खड़े पयाने।।10।।
इक उपाय है आप हि बोले ।
सकल औषध सिंधु में घोंले ।।11।।
क्षीर सिंधु में औषध डारी ।
तनिक हंसे प्रभु लीला धारी ।।12।।
मंदराचल की मथानी बनाई ।
दानवो से अगुवाई कराई ।।13।।
देव जनो को पीछे लगाया ।
तल पृष्ठ को स्वयं हाथ लगाया ।।14।।
मंथन हुआ भयंकर भारी ।
तब जन्मे प्रभु लीलाधारी ।।15।।
अंश अवतार तब आप ही लीन्हा ।
धनवंतरि तेहि नामहि दीन्हा ।।16।।
सौम्य चतुर्भुज रूप बनाया ।
स्तवन सब देवों ने गाया ।।17।।
अमृत कलश लिए एक भुजा ।
आयुर्वेद औषध कर दूजा ।।18।।
जन्म कथा है बड़ी निराली ।
सिंधु में उपजे घृत ज्यों मथानी ।।19।।
सकल देवन को दीन्ही कान्ति ।
अमर वैभव से मिटी अशांति ।।20।।
कल्पवृक्ष के आप है सहोदर ।
जीव जंतु के आप है सहचर ।।21।।
तुम्हरी कृपा से आरोग्य पावा ।
सुदृढ़ वपु अरु ज्ञान बढ़ावा ।।22।।
देव भिषक अश्विनी कुमारा ।
स्तुति करत सब भिषक परिवारा ।।23।।
धर्म अर्थ काम अरु मोक्षा ।
आरोग्य है सर्वोत्तम शिक्षा ।।24।।
तुम्हरी कृपा से धन्व राजा ।
बना तपस्वी नर भू राजा ।।25।।
तनय बन धन्व घर आये ।
अब्ज रूप धनवंतरि कहलाये ।।26।।
सकल ज्ञान कौशिक ऋषि पाये ।
कौशिक पौत्र सुश्रुत कहलाये ।।27।।
आठ अंग में किया विभाजन ।
विविध रूप में गावें सज्जन ।।28।।
अथर्ववेद से विग्रह कीन्हा ।
आयुर्वेद नाम तेहि दीन्हा ।।29।।
काय ,बाल, ग्रह, उर्ध्वांग चिकित्सा ।
शल्य, जरा, दृष्ट्र, वाजी सा ।।30।।
माधव निदान, चरक चिकित्सा ।
कश्यप बाल , शल्य सुश्रुता ।।31।।
जय अष्टांग जय चरक संहिता ।
जय माधव जय सुश्रुत संहिता ।।32।।
आप है सब रोगों के शत्रु ।
उदर नेत्र मष्तिक अरु जत्रु।।33।।
सकल औषध में है व्यापी ।
भिषक मित्र आतुर के साथी ।।34।।
विश्वामित्र ब्रह्म ऋषि ज्ञानि।
सकल औषध ज्ञान बखानि ।।35।।
भारद्वाज ऋषि ने भी गाया ।
सकल ज्ञान शिष्यों को सुनाया।।36।।
काय चिकित्सा बनी एक शाखा ।
जग में फहरी शल्य पताका ।।37।।
कौशिक कुल में जन्मा दासा ।
भिषकवर नाम वेद प्रकाशा ।।38।।
धन्वंतरि का लिखा चालीसा ।
नित्य गावे होवे वाजी सा ।।39।।
जो कोई इसको नित्य ध्यावे ।
बल वैभव सम्पन्न तन पावें ।।40।।
।।दोहा।।
रोग शोक सन्ताप हरण, अमृत कलश लिए हाथ ।
ज़रा व्याधि मद लोभ मोह , हरण करो भिषक नाथ ।।
।।।इति श्री धन्वंतरि चालीसा।।।